देश के सांसदों की दुरावस्था की जैसी मार्मिक तसवीर देश के दो वरिष्ठ सांसदों मुलायम सिंह यादव और लालू यादव ने लोकसभा में पेश की, उससे समूचे राष्ट्र की आंखें अब भी नम हैं। जो बारहों महीने, चौबीसों घंटे देश की सेवा में रत रहते हैं, देश उनकी चिंता ही न करे, तो इससे ज्यादा एहसान-फरामोशी और क्या हो सकती है? इसलिए इन सांसदों से पूछना जरूरी है कि कितना वेतन चाहिए आपको? आपके वेतन-भत्ते में 200 फीसदी का जो इजाफा सरकार ने स्वीकार किया, उससे आपको अत्यंत पीड़ा हुई और आपने पूरी मर्दानगी से लड़कर उसमें 10 हजार रुपयों का इजाफा करवा लिया। फिर भी आपकी वह मांग तो पूरी नहीं ही हुई, जिसमें आपने कहा था कि आपका वेतन 80,000 रुपये से एक रुपया ज्यादा तो होना ही चाहिए, क्योंकि देश के सबसे बड़े नौकरशाहों को 80,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है।
आखिर मालिक का वेतन नौकर से कम कैसे हो सकता है? देश के सारे नौकरशाहों के मालिक सांसद ही तो हैं। हालांकि यह सवाल भी उठता है कि सांसदों का मालिक कौन है? जिस व्यवस्था में ये सांसद अपनी जगह बनाने में लगे हैं, उसकी हालत क्या है, उसके सेवकों की हालत क्या है?
राज्यसभा के एक सांसद प्रीतीश नंदी ने छह साल की अपनी जनसेवा के बाद लिखा है कि जब उन्होंने सांसद बनकर जनसेवा शुरू की, तो उन्हें चार हजार रुपये का जो वेतन मिलता था, वह अचानक ही चौगुना बढ़कर 16,000 रुपये हो गया। फिर सांसद के कार्यालय के लिए 20 हजार रुपये तथा चुनाव क्षेत्र की देखभाल के लिए 20 हजार अलग से मिले। कार खरीदने के लिए ब्याजमुक्त पैसा और संसद में उपस्थित होने के लिए प्रतिदिन एक हजार रुपये का भत्ता भी मिला। फिर पेट्रोल, फोन, घर, फर्नीचर, बिजली, पानी के साथ फूल-पौधों की देखभाल के लिए माली सब बिलकुल मुफ्त मिले हैं। प्रीतीश लिखते हैं कि इन सबके ऊपर से एक करोड़ रुपये की सांसद निधि भी है, जो अब बढ़कर दो करोड़ हो गई है। वह इसके अलावा हवाई और रेल यात्रा की भी सूची बनाते हैं। जो ज्यादा समझदार सांसद हैं, उनके पास दूसरे सारे ऐसे रास्ते भी हैं, जिनकी हम-आप कल्पना नहीं कर सकते।
जब देश में हर कोई लूट पर आमादा है, तो फिर सांसदों से हम दूसरी अपेक्षा क्यों करें? लिहाजा सांसदों को उनकी चाह का वेतन-भत्ता मिले, लेकिन जैसे हर नौकरी के साथ जिम्मेदारियां और जवाबदेहियां जुड़ी होती हैं, वे सब यहां भी तय किए जाएं। यह जरूर देखा जाए कि किस सांसद ने कितने दिन संसद की कार्यवाही में हिस्सा लिया और जितने दिन उसने हिस्सा नहीं लिया, उतने दिन का वेतन-भत्ता न दिया जाए। यह हिसाब भी रखा जाए कि सांसद साहब कितने दिन अपने संसदीय क्षेत्र में गए और लोगों के बीच उनकी समस्याओं के साथ बैठे। अगर इसमें कमी पाई गई, तो भत्ते में कटौती होगी। निर्वाचन क्षेत्र में और दिल्ली में भी उस कार्यालय की स्थिति की जांच होती रहनी चाहिए, जिसके लिए आज 90 हजार रुपये भत्ता दिया जा रहा है। यह भी देखना चाहिए कि इन दोनों दफ्तरों के दरवाजे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए कितने वक्त खुलते हैं और कितने वक्त विशेष सौदों के लिए उनका इस्तेमाल होता है।
संसदीय समितियां कितनी बार, कहां बैठती हैं, क्या करती हैं और उनसे संसद के काम का कितना रिश्ता होता है, इसकी कसौटी बनाई जानी चाहिए। दोनों सदनों के अध्यक्ष इस बात के उत्तरदायी बनाए जाएं कि वे इसकी निगरानी करें, इसकी जानकारी सदन के पटल पर भी रखें और उसे सार्वजनिक भी किया जाए। इससे भत्तों की लूट पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
आज हमारे 543 सांसदों में से 395 यानी 60 फीसदी करोड़पति हैं, तो 150 ऐसे हैं, जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, 73 पर गंभीर मामले हैं- हत्या से लेकर बलात्कर तक। हमारे इस दलीय लोकतंत्र में इतनी आंतरिक ताकत ही नहीं बची है कि वह सत्ता की दौड़ में नैतिकता का भी ध्यान रख सके। ऐसा क्यों न हो कि जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, उन्हें तब तक सामान्य सांसदों जैसी सुविधाएं न मिलें, जब तक वे अदालत से बरी न हो जाएं और अगर सांसद बनने के तीन साल के भीतर वे अपराध मुक्त नहीं होते, तो वह सांसद न रहने पाएं। क्या ऐसी व्यवस्था के बाद मनचाहा वेतन लेकर हमारे सांसद काम करने को तैयार हैं?
3 comments:
अब क्या कहें ?
लडाई पर घायल सैनिकों को मुआवजा पेंशन देने मे जिस सरकार की जान जाती है अनाज सड जाये पर गरीबों को नही बाटेंगे पर खुद निकम्मे कुर्सीयां तो़डने का 80,001 लेंगे।
yeh to india hai, jab tak ye haal rahega to india progress kaise kar sakta hai??? haan neta log apni progress jaroor kar lete hain..
A Silent Silence : Udne Do In Parindo Ko..(उड़ने दो इन परिंदों को..)
Banned Area News : Katrina Kaif does an item number
जागरूक करती पोस्ट ...सब कागजी हेरा - फेरी है
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