Saturday, March 14, 2009

Vaishali

Tuesday, March 10, 2009

Vaishli

Monday, March 9, 2009

Holi Wishes


औरतें औरतें नहीं हैं !

औरतें औरतें नहीं हैं !

-ऋषभ देव शर्मा



वे वीर हैं
मैं वसुंधरा.
उनके-मेरे बीच एक ही सम्बन्ध -
'वीर भोग्या वसुंधरा.'

वे सदा से मुझे जीतते आए हैं
भोगते आए हैं,
उनकी विजयलिप्सा अनादि है
अनंत है
विराट है.

जब वे मुझे नहीं जीत पाते
तो मेरी बेटियों पर निकालते हैं अपनी खीझ
दिखाते हैं अपनी वीरता.

युद्ध कहने को राजनीति है
पर सच में जघन्य अपराध !
अपराध - मेरी बेटियों के खिलाफ
औरतों के खिलाफ !

युद्धों में पहले भी औरतें चुराई जाती थीं
उनके वस्त्र उतारे जाते थे
बाल खींचे जाते थे
अंग काटे जाते थे
शील छीना जाता था ,
आज भी यही सब होता है.
पुरुष तब भी असभ्य था
आज भी असभ्य है,
तब भी राक्षस था
आज भी असुर है.

वह बदलता है हार को जीत में
औरतों पर अत्याचार करके.

सिपाही और फौजी
बन जाते हैं दुर्दांत दस्यु
और रौंद डालते हैं मेरी बेटियों की देह ,
निचोड़ लेते हैं प्राण देह से.

औरते या तो मर जाती हैं
[ लाखों मर रही हैं ]
या बन जाती हैं गूँगी गुलाम
..

वे विजय दर्प में ठहाके लगाते हैं !

वे रौंद रहे हैं रोज मेरी बेटियों को
मेरी आँखों के आगे.
पति की आँखों के आगे
पत्नी के गर्भ में घुसेड़ दी जाती हैं गर्म सलाखें.
माता-पिता की आँखों आगे
कुचल दिए जाते हैं अंकुर कन्याओं के.

एक एक औरत की जंघाओं पर से
फ्लैग मार्च करती गुज़रती है पूरी फौज,
माँ के विवर में ठूँस दिया जाता है बेटे का अंग !

औरतें औरतें हैं
न बेटियाँ हैं, न बहनें;
वे बस औरतें हैं
बेबस औरतें हैं.
दुश्मनों की औरतें !

फौजें जानती हैं
जनरल जानते हैं
सिपाही जानते हैं
औरतें औरतें नहीं होतीं
अस्मत होती हैं किसी जाति की.

औरतें हैं लज्जा
औरतें हैं शील
औरतें हैं अस्मिता
औरते हैं आज़ादी
औरतें गौरव हैं
औरतें स्वाभिमान.

औरतें औरतें नहीं
औरतें देश होती हैं.
औरत होती है जाति
औरत राष्ट्र होती है.

जानते हैं राजनीति के धुरंधर
जानते हैं रावण और दुर्योधन
जानते हैं शुम्भ और निशुम्भ
जानते हैं हिटलर और याहिया
कि औरतें औरतें नहीं हैं,
औरतें देश होती हैं.
औरत को रौंदो
तो देश रौंदा गया ,
औरत को भोगो
तो देश भोगा गया ,
औरत को नंगा किया
तो देश नंगा होगा,
औरत को काट डाला
तो देश कट गया.

जानते हैं वे
देश नहीं जीते जाते जीत कर भी,
जब तक स्वाभिमान बचा रहे!

इसीलिए
औरत के जननांग पर
फहरा दो विजय की पताका
देश हार जाएगा आप से आप!

इसी कूटनीति में
वीरगति पा रही हैं
मेरी लाखों लाख बेटियाँ
और आकाश में फहर रही हैं
कोटि कोटि विजय पताकाएँ!

इन पताकाओं की जड़ में
दफ़न हैं मासूम सिसकियाँ
बच्चियों की
उनकी माताओं की
उनकी दादियों-नानियों की.

उन सबको सजा मिली
औरत होने की
संस्कृति होने की
सभ्यता होने की.

औरतें औरतें नहीं हैं
औरतें हैं संस्कृति
औरतें हैं सभ्यता
औरतें मनुष्यता हैं
देवत्व की संभावनाएँ हैं औरतें!

औरत को जीतने का अर्थ है
संस्कृति को जीतना
सभ्यता को जीतना,
औरत को हराने का अर्थ है
मनुष्यता को हराना,
औरत को कुचलने का अर्थ है
कुचलना देवत्व की संभावनाओं को,

इसीलिए तो
उनके लिए
औरतें ज़मीनें हैं;
वे ज़मीन जीतने के लिए
औरतों को जीतते हैं!



सन्दर्भ

Holi Hai


Happy Holi


Friday, February 27, 2009

Some People


~Anisha~

When U R Sad


~My friend~


~My friend~

Tuesday, February 24, 2009

ख़ुद को बदलते देखा

आज मैंने ख़ुद को बदलते देखा
अपने विचारों से झगड़ते देखा

रोज नए ख्यालों को उभरते देखा
उलझे ख्यालों को न सुलझते देखा

ख़ुद को उनसे अलग करते देखा
शायद आज ख़ुद को संभलते देखा

कोई अपना नहीं

जब दिल से बात करो तो लोग दिमाग से सुनते हैं। जब दिमाग से बात करो तो लोग दिल से सुनते हैं। स्वर मिलाओ तो स्वर नहीं मिलते । अपना बनाओ तो अपने नहीं बनते हैं।अगर बन भी गए तो आगे चलकर मुसीबत बनते है। यह दुनिया एक तलाश घर हैं। जब तक तलाश पूरी न हो जाये तलाशते रहो । यह तलाश ही जिन्दगी है। कभी कभी इस तलाश में आदमी जीत भी जाता है मगर हारता जादा है। जीत के अपने अपने तरीके हैं किसी का तरीका किसी दूसरे को जमता नहीं। एक अजीब सी उलझन में आदमी न चाहते हुए उलझ सा जाता है । कोई भी इस जिन्दगी में इस मनोदशा से अछूता नहीं है। जिन्दगी जीने का कोई एक पैमाना नहीं है। शायद इसी का नाम जिन्दगी है। जहाँ तक मैं समझता हूँ। इस दुनिया में हजारों नहीं लाखों नहीं बल्कि अनगिनत स्वभाव के लोग है। कभी कभी अपने मन के लोग सारी उम्र नहीं मिलते। समझ में ही नहीं आता कहाँ से शुरू करुँ कहाँ ख़त्म करुँ। कभी कभी सारी दुनिया को समझने के चक्कर में हम इतने उलझ जाते हैं कि ये दुनिया ही बेगानी लगने लगती है। आदमी कभी थक जाता है तो कभी थका दिया जाता है। एक कहावत से मैं काफी प्रभावित हूँ। " कि जिन्दगी में खुश रहना बहुत सरल है पर सरल रहना बहुत कठिन है "। शायद जिन्दगी का रहस्य इसी कहावत में छिपा नज़र आता है। जिन्दगी समझने से कभी समझ में नहीं आती क्योकि हम ज्ञान के समुन्दर में इतने उलझ जाते हैं कि जिन्दगी से काफी दूर चले जाते है।अंत में यही दूरी हमारी निराशा का कारन बन जाती है। फिर भी इस कारन को हम समझ के समझना नहीं चाहते हैं । शायद हमारी यही जिद हमारे हर दुःख का कारन बन जाती है।

पाने की चाह में

पाने की चाह में खोया बहुत हूँ मैं।
हंसने की चाह में रोया बहुत हूँ मैं।


सागर में मोती हमें भी मिल जायेगे
इसीलिए खुदको डुबोया बहुत हूँ मैं।

इंसानियत कहीं बिखर ही न जाये
प्यार में सबको पिरोया बहुत हूँ मैं।

कैसे कहूँ कैसे सही है उसकी जुदाई
इन आँखों को भिगोया बहुत हूँ मैं।

महक उठे जहाँ फूलों की खुशबू से
फूलों को सचमुच बोया बहुत हूँ मैं।

ठुकरा करके वो कहीं न चली जाये
इसलिए नखरों को ढोया बहुत हूँ मैं।

गुजरा वक्त

गुजरा वक्त कभी वापस नहीं आए।
चाहे कोई चीखे और चिल्लाए ।
झडे फूल कभी खिलते नहीं हैं
गए लोग कभी मिलते नहीं हैं
चाहे कोई सारी उमर बुलाए।
मनालो उनको जो रूठे हैं
मिलालो उनको जो छूटे हैं
ऐसा न हो फ़िर मन पछताए ।
वक्त कभी भी रुका नहीं है
किसी के आगे झुका नहीं है
वक्त का दरिया आगे बढ़ता जाए।
गुजरा वक्त .....

Friday, February 6, 2009







Tuesday, February 3, 2009

Saturday, January 31, 2009

Ik Pal


Friday, January 30, 2009

जो भी मिला अधूरा मिला

खुशियाँ ही मिली न पूरी न गम ही पूरा मिला
जब भी मिला जो भी मिला अधूरा ही मिला

लोंगो ने सींच कर पानी से गुलों को बना लिया गुलशन
हमने खून और पसीने भी बहाया तो कोई गुल न खिला

देकर धोका लोग ये कैसे भरोसा बड़ा लेते हैं
करके हजारो बफाएं, हमें कभी इक बफा का सिला न मिला

अब तो रोती है इक आँख और दूसरी हंसती है
अपनी मुलाकातों का ये क्या हो गया है सिलसिला

जो ख़ुद मैं भरी आग है , क्या कम जलता हूँ
ओ दूर से आती याद अब और न जला

मोसमे पतझड़ है कि हूँ सूखा हुआ सा
बस अब टूट के गिर जाऊंगा जो और हिला

जो तेरी मर्जी ले तू भी करले पूरी
न शिकायत करेगे हम किसी से , न ही होगी हमें तुझसे कोई गिला

नजदीकियों से डर लगता है

अंधेरों से नही उन उजालों से डर लगता है ,क्यूंकि उन्हे देखर मेरा चाँद कहीं जा छुपता है !!मुझे बातों से नही खामोशियों से डर लगता है ,कोन सी बात है, जो वो अपने ही तक रखता है !!मुहं फेरकर कोई जाए तो क्यूं कोई शिकबा रहे ,रूबरू होकर, न कोई सताए , डर लग ता है .!!नही लगता कोई डर जो लोग दूर से मुकुराते हुए निकले ,नजदीकियां कोई बढाये तो डर लगता है !!जमाना जान पे भी हो आमादा , तो कोई डर नही ,बात जब प्यार की आ जाए तो डर लगता है !!

Wednesday, January 21, 2009

जिन्दगी

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर.....इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।ये सिलसिला यहीं चलता रहता.....फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा.........." तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "तब मैंनें कहा................मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगेजिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं......तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा.......एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा..........बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.........मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी......मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी"

Thursday, January 8, 2009

सत्यम कम्प्यूटर्स

देश में सूचना प्रौद्योगिकी (information technology) क्षेत्र की चौथी बड़ी कंपनी सत्यम कम्प्यूटर्स (Satyam Computers) के अध्यक्ष बी. रामलिंग राजू ने खातों में भारी धांधली उजागर होने के बाद बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।सत्यम (satyam ) से जुड़ा ताजा घटनाक्रम इस प्रकार रहा-
06 जनवरी : प्रतिद्वंद्वी कंपनी कोटेक महिंद्रा (mahindra) द्वारा सत्यम (satyam) से संपर्क साधे जाने की खबरों के बाद कंपनी के शेयरों में 7 फीसदी का उछाल।
05 जनवरी : कॉरपोरेट गवर्नेंस मुद्दे के विवाद से सत्यम (satyam) का कारोबार के प्रभावित होने की आशंका के बीच कंपनी के शेयर 9 प्रतिशत लुढ़के।
02 जनवरी : सत्यम के प्रमोटरों की कंपनी (company) में हिस्सेदारी घटकर 5.13 प्रतिशत पर पहुँची। विश्लेषकों ने कंपनी के बिकने की आशंका जताई।
30 दिसंबर : कंपनी प्रबंधन में बदलाव, कंपनी के एक बड़े हिस्सेदार द्वारा अपने शेयर बेचे जाने की खबरों के बीच कंपनी के शेयरों में तेजी।
29 दिसंबर : कंपनी के तीन और निदेशकों के इस्तीफे के बावजूद कंपनी के शेयरों में प्रबंधन में बदलाव की उम्मीद के बीच तेजी।
28 दिसंबर : निवेशकों का विश्वास हासिल करने के लिए कुछ समय जुटाने के लिए कंपनी ने प्रबंधन मंडल की बैठक 10 जनवरी तक टाली।
26 दिसंबर : कंपनी के एक स्वतंत्र निदेशक मंगलम श्रीनिवास का इस्तीफा (resign)।
25 दिसंबर : विश्व बैंक से कंपनी के बारे में जारी अनावश्यक बयान वापस लेने की माँग।
24 दिसंबर : कंपनी के अधिग्रहण को लेकर उपजी अफवाहों के बीच शेयर कीमतों में भारी गिरावट।
23 दिसंबर : विश्व बैंक (world bank) ने सत्यम (satyam) के साथ कारोबार करने पर आठ वर्ष का प्रतिबंध लगाया। कंपनी के शेयर 14 फीसदी लुढ़के।
18 दिसंबर : बाजार का विश्वास जीतने के लिए प्रबंधन बोर्ड का शेयरों की वापस खरीद पर विचार के लिए 29 दिसंबर को बैठक का फैसला।
17 दिसंबर : कंपनी प्रबंधन विवाद के बीच शेयर और लुढ़के। अध्यक्ष ने कहा निवेशकों में अविश्वास इसका कारण।
16 दिसंबर : सत्यम की ओर से इनफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure)क्षेत्र की मेटास समेत दो दिग्गज कंपनियों को 16 अरब डॉलर में खरीदने का ऐलान, लेकिन महज 12 घंटे बाद ही सौदा रद्द करने की घोषणा से कंपनी के शेयर औंधे मुँह गिरे।