Saturday, September 20, 2014

माँ


वो माँ , जो सूर्योदय से पहले जगाकर कहती -
हथेलियों में देखकर बोलो , 'कराग्रे वस्ते लक्ष्मी' ,

वो माँ , जो बिस्तर से नीचे उतरने से पहले
धरती को छूतीं और कहती, ' पादस्पर्शं क्षमस्वमेव',

वो माँ , जो जन्मदिन पर करवाती है 'रामायण का पाठ',
ताकि दिन शुभ हो !

वो माँ , जो परीक्षा से पहले लगाती टिका और खिलाती दही ,
ताकि भविष्य मंगलमय हो !

पर स्वयं उनके लिए भविष्य बुन रहा था,
हिकारत , उपेक्षा , उपहास का घना जाल
क्योंकि बदलते वक़्त के संग नहीं कर सकी कदमताल ,
नहीं सीख सकी 'शह' और 'मात' कि चाल !!!

मेरे अपने गाँव

अमरैया में आम टिकोरा जामुन -महुआ बारी में 
भिनसारे में कोयल बोले राग उठे जंतसारी में 
नीम निबोली , भर भर झोली , कागा बोले काँव के

ऐसा लगता तुम लगते हो मेरे अपने गाँव के 
ताल तलैया बरधा गइया नीम वाली छावं के !!!