राष्ट्र बेचैन है। श्रीराम जन्मभूमि मसले के भूमि मालिकाना मुकदमे का फैसला आने वाला है। उत्तर प्रदेश सरकार किसी अनहोनी की कल्पना से भयभीत है। अतिरिक्त पुलिस प्रबंधन का शोर है। केंद्र से अतिरिक्त पुलिस बल आने वाला है। न्यायालय आदरणीय संस्था है। न्यायालय तत्समय प्रवृत्त विधियों के अधीन फैसले देते हैं। राष्ट्र-राज्य और संसद राष्ट्रीय आकांक्षाओं के प्रतिनिधि होते हैं। उन्हें राष्ट्रीय आकांक्षा पर ध्यान देना चाहिए। बहुचर्चित शाहबानो मुकदमे में न्यायिक फैसले के बाद विधि संशोधन हुआ। मामला इस्लामी आस्था और शरीयत का था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी के दोषीपुरा मोहल्ले के एक स्थल पर शिया-सुन्नी टकराव था। 1970 के दशक में न्यायालय ने फैसला सुनाया। 40 बरस से ज्यादा समय हो गया, लेकिन सरकार ने फैसला लागू नहीं किया। उत्तर प्रदेश के हरदोई-शाहबाद के कौशल्या देवी मंदिर का मसला अंग्रेजीराज की सर्वोच्च न्यायपीठ-प्रीवी काउंसिल तक गया। अंग्रेजी सत्ता ने भी काउंसिल का फैसला लागू नहीं कराया। मंदिर आज भी है। अयोध्या विवाद में भूमि का मालिकाना हक न्यायालय बताएगा। उसका सम्मान होना चाहिए, लेकिन आस्था का प्रश्न तो ज्यों का त्यों रहेगा। हिंदू आस्था आंतरिक सत्यानुभूति है। मार्क्सवाद के अनुसार संस्कृति और सभ्यता का विकास अतिरिक्त उत्पादन से हुआ, लेकिन हिंदू संस्कृति और आस्था का विकास अतिरिक्त जिज्ञासा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हुआ। हिंदू आस्था का अंदाज निराला है। करोड़ों ने देखा, करोड़ों ने सुना और गुना, अंतत: अनुभूति हुई और आस्था बनी। ऋग्वेद में सृष्टि निर्माणकर्ता पर भी जिज्ञासुपरक टिप्पणियां हैं। पंथिक आस्थाओं का निर्माण देववाणी और पवित्र पुस्तकों से हुआ। हजरत मोहम्मद और यीशु के वचन अतर्क्य हैं। श्रीराम भारतीय राष्ट्रभाव का चरम आनंद हैं, वे मंगल भवन हैं, अमंगलहारी हैं। वे भारतीय मन के सम्राट हैं, पुराण में हैं, काव्य में हैं, इतिहास में भी हैं। लेकिन श्रीराम पर बहस है कि वे काव्य कल्पना हैं या इतिहास? वे इतिहास हैं तो जन्मस्थान भी बहस के घेरे में है। न्यायालय के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुदाई की थी। बहरहाल, रिपोर्ट में ईसा पूर्व 3500 वर्ष से 1000 ईसा पूर्व तक अयोध्या एक बस्ती है। शुंग काल (200-100 ईपू) कुषाण काल (100 ई-300 ई) और गुप्तकाल (400 ई-600 ई) तक यहां बस्तियां हैं, सिक्के हैं, देवी भी हैं। इसके बाद के स्तरों में मंदिरों के अवशेष हैं। एएसआई रिपोर्ट के अनुसार एक गोलाकार विशाल मंदिर दसवीं सदी में बना। इसके उत्तर में जलाभिषेक का प्रवाह निकालने वाली नाली भी है। फिर एक दूसरा मंदिर है। यहां हिंदू परंपरा का प्रतीक कमल है, वल्लरी हैं। 50 खंभों के आधार मिले हैं। काले पत्थरों के खंभों के अवशेष भी हैं। यह मंदिर लगभग 1500 ईसवी तक रहा। आगे का इतिहास इस्लामी हमलों का है। सन 1528 में बाबर के सिपहसालार मीरबाकी ने इसी मंदिर को गिराकर बाबरी मस्जिद बनवाई। आस्टि्रया के टाइफेंथेलर ने लिखा है कि बाबर ने राम मंदिर को ध्वस्त किया और मस्जिद बनाई। ब्रिटिश सर्वेक्षणकर्ता (1838) मांट गुमरी मार्टिन के मुताबिक मस्जिद में इस्तेमाल स्तंभ राम के महल से लिए गए। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी सन 1528 से पूर्व बने एक मंदिर का हवाला है। एडवर्ड थार्नटन ने लिखा कि बाबरी मस्जिद हिंदू मंदिर के खंभों से बनी। बाबरी मस्जिद निर्माण पर ढेर सारी टिप्पणियां हैं। पी कार्नेगी भी हिस्टारिकल स्केच आफ फैजाबाद, विद द ओल्ड कैपिटल्स अयोध्या एंड फैजाबाद में मंदिर की सामग्री से बाबर द्वारा मस्जिद निर्माण का वर्णन करते हैं। गजेटियर ऑफ दि प्राविंस आफ अवध में भी यही बातें हैं। फैजाबाद सेटलमेंट रिपोर्ट भी इन्हीं तथ्यों को सही ठहराती है। इंपीरियल गजेटियर ऑफ फैजाबाद भी मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण के तथ्य बताता है। बाराबंकी डिस्टि्रकट गजेटियर में जन्मस्थान मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने का वर्णन है। मुस्लिम विद्वानों ने भी काफी कुछ लिखा है। मिर्जा जान कहते हैं, अवध राम के पिता की राजधानी था। जिस स्थान पर मंदिर था वहां बाबर ने एक ऊंची मस्जिद बनाई। हाजी मोहम्मद हसन कहते हैं, अलहिजरी 923 में राजा राम के महल तथा सीता रसोई को ध्वस्त करके बादशाह के हुक्म पर बनाई गई मस्जिद में दरारें पड़ गई थीं। शेख मोहम्मद अजमत अली काकोरवी ने तारीखे अवध व मुरक्काए खुसरवी में भी मंदिर की जगह मस्जिद बनाने का किस्सा दर्ज किया। मौलवी अब्दुल करीम ने गुमगश्ते हालाते अयोध्या अवध (1885) में बताया कि राम के जन्म स्थान व रसोईघर की जगह बाबर ने एक अजीम मस्जिद बनवाई। इस्लामी हमलावरों और शासकों ने समूचे भारत में मंदिर तोड़ने व मस्जिद बनाने का अभियान चलाया था। डॉ. बीआर अंबेडकर ने पाकिस्तान आर पार्टीशन ऑफ इंडिया में लिखा, मुस्लिम हमलों का लक्ष्य लूट या विजय ही नहीं था, नि:संदेह इनका उद्देश्य मूर्ति पूजा और बहुदेववाद को मिटाकर भारत में इस्लाम की स्थापना भी था। पहले मोहम्मद बिन कासिम (711 ईसवी) फिर महमूद गजनी। महमूद के अधिकृत इतिहासकार उतवी ने लिखा, उसने मूर्तियां-मंदिर तोड़े, इस्लाम की स्थापना की। मोहम्मद गोरी के इतिहासकार हसन निजामी के मुताबिक, उसने काफिरों, बहुदेववाद, मूर्तिपूजा की अशुद्धता नष्ट की। कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कूवत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई। इसका नाम ही इस्लाम की ताकत (कूवत) है। इसकी पूर्वी दीवार पर अरबी में लिखा है, 27 मंदिरों को ध्वस्त कर सामग्री से मस्जिद बनाई गई। अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद है। अढ़ाई दिन में भव्य निर्माण नहीं होते। यह विगृहराज चतुर्थ का बनाया सरस्वती मंदिर है। इसे मस्जिद बनाया गया। हसन निजामी ने कुतुबुद्दीन की तारीफ में ताज उलमासिर में लिखा विजेता ने इलाके को मूर्ति और मूर्ति पूजा से मुक्त किया, मंदिरों के गर्भगृहों में मस्जिदें बनाई। श्रीराम जन्मभूमि राष्ट्रीय भावना की प्रतीक है। करोड़ो जन आहत हैं। बाबरी मस्जिद पक्ष के भी अपने आग्रह हैं। हिंदू मानस ने दिल्ली की कूवत उल इस्लाम मस्जिद, अढ़ाई दिन का झोपड़ा आदि सैकड़ों मंदिरों के मस्जिद बनाए जाने पर शोर नहीं मचाया। लाखों मतांतरण जोरजबर से कराए गए। श्रीराम जन्मभूमि का मसला गहन राष्ट्रभाव का प्रतीक है। इसलिए उभयपक्षी संवाद अपरिहार्य है। आपसी बातचीत से निर्णय करें कि यहां क्या बनना चाहिए? क्या एक ही जगह पर मंदिर-मस्जिद दोनों बनें या मस्जिद को मंदिर से दूर बनाया जाए आदि। परस्पर संवाद सर्वोत्तम उपाय है। मुस्लिम नेतृत्व राष्ट्रीय आकांक्षा पर गौर करे। आहत हिंदू भावनाओं को सम्मान दें। संसद राष्ट्रीय आकांक्षा के अनुरूप कानून बनाए। हिंदू श्रीराम मंदिर नहीं छोड़ सकते।
मंतव्य : ह्रदय नारायण दीक्षित
मंतव्य : ह्रदय नारायण दीक्षित
1 comment:
badiya post....ye majhab ke masle ko agar thik dhang se solve karna ho to sabhi ko mil kar rehna chahiye ... kyuki khuda ne sabhi ko ek jaisa banaya hai to fir kis liye majhab k naam pe bair karna???
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