Wednesday, September 8, 2010

सेठ और किसान

एक धनाढ को अपनी अकूत संपत्ति पर भारी घमंड हो गया। वह प्राय: अपने पुत्र से कहा करता कि सुख-सुविधा के जितने साधन उसके पास हैं, अन्य किसी के पास नहीं है। वह कहता कि गांवों की हालत देखोगे, तो पता चलेगा कि लोग कितने अभाव में दिन काटते हैं।
एक दिन वह पुत्र को कार में बिठाकर एक गांव ले गया। गांव में वह एक परिचित किसान के घर पहुंचा। किसान ने बड़े प्रेम से उसका स्वागत किया। मिट्टी की हंडिया में रखा गरम दूध उसे पिलाया, ताजा मक्खन, मट्ठे और सब्जी के साथ गरम-गरम रोटियां खिलाईं। लौटते समय कार में गुड़ व गन्ने रख दिए।
लौटते समय सेठ ने पुत्र से पूछा, ‘बेटा, देखा तुमने गांव की हालत। सच बताना तुम्हें कैसा लगा?’ बेटे ने कहा, ‘पिताजी यदि सच ही जानना चाहते हैं, तो सुनिए। हमारे घर में केवल एक कुत्ता है, उस किसान के घर में चार गाएं और बैल बंधे हैं। उसके बच्चे ताजा हवा में झूले झूलकर किलकारियां मार रहे थे। हमारी कोठी के पिछवाड़े छोटा-सा स्विमिंग पूल है, जबकि किसान के घर के पास नदी बह रही थी। हम फ्रिज में रखी कई-कई दिन पुरानी सब्जियां खाते हैं, जबकि उसने ताजा सब्जियों से भोजन कराया। हम एकाकी जीवन बिताते हैं और जब हम उस किसान के घर पहुंचे, तो कई लोग हमारे स्वागत के लिए आए थे। उसका अनूठा प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर मुझे लगा कि हमारे मुकाबले वे कहीं ज्यादा अच्छे इनसान हैं और हमसे ज्यादा अमीर भी।’
पुत्र के शब्द सुनकर सेठ का अहंकार काफूर हो चुका था। उस दिन के बाद उसने खुद को अमीर कहना छोड़ दिया।
हर दिल जवां किसान 

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