किरण बेदी देश कीपहली महिला आईपीएसऑफ़िसर हैं. यह भी सहीहै कि वे देश की ऐसीपहली महिला ऑफ़िसर हैंजो चाहें-करें, उसकी चर्चामीडिया में ज़रूर होती है.वे पुलिस में ना होतीं तोमीडिया या फिर पॉलीटिक्स में ज़रूर होती. हालांकि वे टेनिस प्लेयर बनने काख़्वाब भी रखती थीं. अच्छे काम का श्रेय लेना भी वे ख़ूब जानती हैं. चाहे तिहाड़जेल में किए गए सुधार के काम हों या अपने ग़ैर सरकारी संगठन ‘नवज्योति‘के ज़रिए किए जाने वाले सामाजिक सुधार के काम. पुरुष-प्रधान व्यवस्थामहिला आधिपत्य को नहीं स्वीकारती लिहाज़ा वरिष्ठ अफ़सरों से मतभेदों कोलेकर वे चर्चा में भी रहीं.
यह भूमिका इसलिए बनाई गई क्योंकि जब कभी देश में महिला सशक्तिकरण कीबात होती है श्रीमती बेदी का चेहरा हमारे सामने आ जाता है. बेहद सुलझी विचारोंकी और दृढ़-संकल्पित महिला के रूप में उनकी छवि उभरती है. दो साल पहले हीवे संयुक्त राष्ट्र संघ से लौटी थीं. किरण बेदी फ़िलहाल ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्चएण्ड डेवलपमेंट में डीजी के पद पर तैनात है.
आज ही के दिन महिला सशक्तिकरण के अभियान में नया अध्याय शुरू हुआ है.देश को प्रतिभा पाटिल मिली है हमारी पहली महिला राष्ट्रप्रमुख ! (राष्ट्रपति कहनेमें लिंगभेद नज़र आता है)…. लोग दबी ज़ुबान कहते रहे कि केंद्र की सरकार नेप्रतिभा जी को जीताने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया और सुपर पीएम कही जानेवाली सोनिया जी की पूरी कॉग्रेस पार्टी और लेफ़्ट इस मुद्दे पर एकमत हो गए.यह बात भी ध्यान देने वाली है कि देश को पांच साल पहले भी कैप्टन लक्ष्मीसहगल के रूप में पहली महिला राष्ट्रपति मिल सकती थी. लेकिन सहगलसोनिया जी के पीछे लगी कतार में नहीं थीं.
दिल्ली के उप राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में किरण बेदी को दिल्ली का पुलिसकमीश्नर बनाए जाने की सिफ़ारिश की थी. लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय नहीं चाहता कि किरण बेदी दिल्ली की पुलिस कमीश्नर बनें. वरिष्ठता के क्रम में भीबेदी ही नवनियुक्त कमीश्नर वाई एस डडवाल से कहीं ज़्यादा अनुभवी औरलोकप्रिय हैं. श्रीमती बेदी 1972 बैच की अधिकारी है जबकि डडवाल 1974 केअधिकारी है. यह भी ख़बरें छपी कि डडवाल वही अधिकारी हैं जो जेसिका लालहत्याकांड की रात टैमरिन कोर्ट की उसी पार्टी में मौजूद थे, जहां हत्या हुई थी.
ईमानदारों से हर शातिर घबराता है और हमारी व्यवस्था में किरण बेदीजैसे लोग फिट नहीं नज़र आते. व्यवस्था में शीर्ष पर बैठे लोग इतनेचतुर है कि बेदी जैसे लोगों को किनारे करने का कोई भी मौक़ा नहींचूकते. सरकारी व्यवस्था में असरकारी कामों के लिए कोई जगह नहीं होती. राजनीति नौकरशाहों को अपना दरख़रीद ग़ुलाम बनाकर रखना चाहती है.
श्रीमती बेदी के साथ किसी पार्टी के लोग नहीं है.. कलाम साहब देश की जनता के राष्ट्रपति थे (हैं). कलाम साहब आज राष्ट्रपति भवन से रिटायर कर गए. किरण बेदी अपने को दिल्ली का पुलिस कमीश्नर ना बनाए जाने से नाराज़ होकर तीन महीने की छुट्टी पर चली गई हैं. प्रतिभा का सम्मान हुआ और किरण का अपमान हुआ.. क्यों? ये सोचने वाली बात है.
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