Saturday, November 29, 2008

राज ठाकरे की तॉवें पर राजनीतिक रोटियां

सभी राजनीतिक रोटियां सेकने में लग गए हैं। चुनाव करीब है। शायद तीन दशक पहले की बात आपको याद होगी, बाल ठाकरे के नेतृत्व में मुंबई में रहने वाले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ एक नारा दिया गया था, लुंगी उठाओ-पुंगी बजाओ। अब उसी खानदान के कुलदीपक ने उत्तर भारतीयों के विरोध का ठेका लिया है। संकट सामने है कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसे चुनें। अब देखिए वर्तमान राजनीति--
कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस इसलिए नवनिर्माण सेना को बढ़ावा दे रही है कि उसे शिव सेना से अगले चुनाव में मुकाबला करना है। अगर राज ठाकरे इस तरह की नंगई करके कुछ वोट काटने में सफल हो जाता है तो वह कांग्रेस के हित में रहेगा। यही वजह है कि कांग्रेस सरकार महाराष्ट्र में जंगलराज बरकरार रखने में मदद कर रही है। विलासराव देशमुख सरकार ने अगर गिरफ्तारी की भी, तो नाटक करने के लिए। हिंदी टीवी चैनलों पर मराठी बोलकर दिखाना पड़ा कि वे भी मराठियों के खैरख्वाह हैं।
भाजपा की राजनीति
यह पार्टी तो जैसे नंगी होने के लिए पैदा ही हुई है। सत्ता में रही तब अपने मुद्दे को छो़ड़कर नंगी हुई। सत्ता के बाहर रही तो और तरीकों से। राष्ट्रीय और हिंदूवादी पार्टी होने का दावा करने वाले ये लोग भी मुंबई में चल रही गुंडई के बारे में मौन साधे हुए हैं। शायद आडवाणी को प्रधानमंत्री बनने का लोभ इतना है कि वे राज ठाकरे और बाल ठाकरे दोनों को साधे रखना चाहते हैं। लेकिन इनको यह पता नहीं कि इस तरह के दोगलेपन को जनता पसंद नहीं करती।
लालू और मुलायम की राजनीति
ये केंद्र में सत्ता में बैठे हैं, लेकिन औकात नहीं है कि केंद्र सरकार की मुंबई में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को पिटवाने की नीति का विरोध कर सकें। खास बात यह है कि मुलायम के मुंबई प्रतिनिधि अबू आजमी भी अब उत्तर भारतीयों को संगठित करने में लग गए हैं। कोशिश यही कि इस पिटाई का राजनीतिक फायदा उठा लिया जाए। कांग्रेस की तुष्टिकरण में अमर सिंह तो पहले से ही सहयोगी बनकर बाटला हाउस के प्रवक्ता बनकर उभरे हैं।
अब सवाल उठता है कि ऐसी बुरी दशा में जनता जाए तो कहां जाए। राष्ट्रीयता का खामियाजा यूपी और बिहार वाले भुगत ही रहे हैं, जिसके कारण न तो इन राज्यों में सार्वजनिक इकाइयां हैं और न ही निजी। नौकरी के लिए ये दूसरे राज्यों में जाते हैं और यह समझते हैं कि पूरा भारत हमारा है, क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।

राष्ट्रीय बेशर्मी

मुंबई में समुद्र के रास्ते कितने लोग घुसे थे इस बात का तो अभी तक पता नहीं चल पाया है,लेकिन हथियार से खेलने वाले सभी शैतानों को ध्वस्त कर दिया गया है। हो सकता है कुछ शैतान बच निकले हो और किसी बिल में घुसे हो। हर पहलु को ध्यान में रखकर सरकारी तंत्र काम कर रहा है। बहुत जल्द मुंबई पटरी पर आ जाएगी। यहां की आबादी की जरूरते मुंबई को एक बार फिर से सक्रिय कर देंगी। फिर से इसमें गति और ताल आ जाएगा। लेकिन क्या अब हम आराम से यह सोच कर बैठ सकते हैं कि गुजरात, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों का कोई शहर नहीं जलेगा या नहीं उड़ेगा?
यह कंप्लीट वार है, और इसे एक आतंकी हमला मानकर भूला देना बहुत बड़ी राष्ट्रीय बेशर्मी होगी। और हम से कोई भी इस बात का यकीन नहीं दिला सकता कि अगला निशाना कौन सा शहर होगा, लेकिन हमला होगा और जरूर होगा। ये कंट्री के हेरिटेज पर पर हमला है, जो वर्षों से जारी है और जारी रहेगा। वर्षों से हमारे हेरिटेज पर हमले होता आ रहे है,चाहे वो संसद हो या फिर मुंबई का ताज। यह एक ही कड़ी है। और इस कड़ी का तार लादेनवादियों से जुड़ा है। इस्लाम में फतवे जारी करने का रिवाज है। क्या इसलाम की कोई धारा इनके खिलाफ फतवे जारी करने को कहता है,यदि नहीं कहता है तो इसलाम में संशोधन की जरूरत है। इतना तो तय है कि यह हमला इस्लाम के नाम पर हुआ है। जो धारा जीवित लोगों को टारगेट बना रहा है, उसे मिट्टी में दफना देने की जरूरत है। भारत एक ग्लोबल वार में फंस चुका है, अपनी इच्छा के विरुद्ध। मुंबई घटना को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।
यह वार है और चौतरफा वार है। बस पहचानने की जरूरत है। ठीक वैसे ही जैसे चर्चिल ने हिटलर के ऑपरेशन 16 को पहचाना था, और उसके ऑपरेशन को ध्वस्त करने लिए काउंटर ऑपरेशन लॉयन बनाया था। उन लोगों का टारगेट क्या है ? कभी लंदन को उड़ाते हैं, कभी ट्वीन टावर उड़ाते हैं, कभी जर्मनी को उड़ाते हैं,कभी मुंबई को। ये कौन लोग हैं और क्या चाहते हैं ? इसे आईटेंटीफाई किया जाना चाहिए। और इसके खिलाफ व्यवस्थित तरीके से इंटरनेशनली इनवोल्व होना चाहिए। चीन और जापन में इस तरह के हमले क्यों नहीं हो रहे हैं ??
क्‍या इससे कुछ भी कम राष्ट्रीय बेशर्मी हैं ?

कांग्रेस का दुर्भाग्य

इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य और देश का महा दुर्भाग्य कहा जायेगा, कांग्रेस जो खेल चुनाव पूर्व बेला में खेल रही थी वह डेक्कन मुज्जाहिद्दीन ने मुंबई को थर्रा कर बिगाड़ दिया। मनमोहन की सरकार से आतंरिक सुरक्षा तो संभाले नही संभालती, देश को क्या सुरक्षा मुहैय्या कराएगी। सरकार का खेल दो चरणों में कामयाब हो चुका था पहले इसने देश की आतंरिक सुरक्ष और शील के ध्वज वाहक भारत्धर्मी समाज के साधू संतों को हड़काया, मकोका लगा कर उन्हें अपमानित किया फिर सेना के छठे पे कमीशन की सिफारिशों से असंतोष ज़ाहिर करने पर शहीद मोहन चंद शर्मा के प्रतिराख्षा सेनाओं में परियाय रहे लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित को निशाने पर लिया ताकि फौज कार्य पालिका के अगुवाओं के बराबर भत्तों की मांग आइन्दा न दोहराएं। इन दिनों सरकार के निशाने पर न्याय पालिका थी। सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशों को विधाइयका द्बारा दो बार लोटाने के पीछे यही मंशा थी। आतंकवादियों ने अब जब मुंबई में खुला खेल फर्रुखाबादी खेला तब सरकार को इल्म हुआ अपनी सीमाओं का। विलास राव देशमुख तो अभी भी इतरा रहे हैं, कहते हैं की १८६ ही मरे निशाने पर तो पाँच हज़ार थे, शर्म की बात है सरकार के लिए, जो सेना कल तक निशाने पर थी हमेशा वही काम आती है। अब तो चेतो मनमोहन सर ....