Friday, September 3, 2010

लोकसभा कुत्तों के हवाले

देश की लोकसभा कुत्तों के हवाले किसने करी?

The parliament has gone to the dogs. देश कि संसद की ज़िम्मेदारी होती है कानून पर बातचीत करना और अपनी सम्मति से पेश हुये बिलों को कानून का दर्जा देना. इस देश की जनता की ज़िम्मेदारी थी वहां ऐसे सज्जन और जागरुक व्यक्तियों को भेजना जो ज्यादा से ज्यादा बिलों को कानून बना पायें और हर मुद्दे पर सजगता से बहस करें. लेकिन लगता है जनता ने संसद को कुत्तों के हवाले कर दिया है.

संसद जब सत्र में होती है तो खबर यही आती है कि इसने उस पर भौंक दिया, उसने इसको काट लिया, एक ग्रुप ने मिलकर दूसरे को नोंच-खसोट दिया… शोर-शराबा… चिल्लम-पें… जूता-झपटी… भौं..भौं..

ताज़ा सर्वे के अनुसार संसद को सत्र के दौरान चलाने के लिये हर मिनट 26,000 रुपये का खर्च आता है. सत्र के दौरान सारे सदस्य हवाई जहाज़ों में लद-लदकर, अपने वीआपी बंगलों में रहकर, सरकारी लाल-बत्ती वाली गाड़ियों में भरकर एक दूसरे पर भौंकने-काटने आते हैं.

संसद में इतनी ज़ोर से भौंकने वाले … नेता यह भूल जाते हैं कि वह सिर्फ संसद के खर्च का ही हर्जा नहीं कर रहे, वह देश को चलाने, बेहतर बनाने के लिये ज़रूरी कानूनों के लागू करने में दिक्कतें पैदा कर रहे हैं. एक द्सरे को गाली देना, फिर उस बात पर अपने दोस्तों, चमचों, गुर्गों को इकट्ठा करके पिल पड़ना यह सब इन कुत्तों को इस लिये सुहा रहा है क्योंकि सब सरकारी खर्च पर होता है.

- 1952-1961 के बीच राज्यसभा में सालाना औसतन 90.5 बैठकें होती थीं जो अब (1995-2001) घट कर 71.3 रह गईं हैं, लेकिन कुत्तों का खर्चा बढ़ गया है.

- 1952-1961 के बीच सालाना 68 बिल पास होते थे जो अब 49.9 की औसत पर रहे गये हैं (1995-2001).

- 11वीं लोकसभा में कुल समय का 5.28 प्रतिशत भौंकने में बरबाद हुआ, 12वीं में 10.66 प्रतिशत, 13वीं में 18.95 प्रतिशत, 14वीं में 21 प्रतिशत! … मतलब हर बार जनता पहले से ज़्यादा कुत्ते चुनकर भेज रही है.

लेकिन यह कुत्ते भौकेंगे सरकारी खर्च पर!

2007 में प्रपोज़ल दिया गया कि अगर काम नहीं तो पैसा नहीं की तर्ज पर संसद में हंगामा करने वाले नेताओं की पगार व भत्ते रोक लिये जायें, लेकिन इस प्रपोज़ल को किसी भी राजनैतिक दल ने मंजूरी नहीं दी.

मतलब कुत्ते संसद में आयेंगे. भौंकेगे और सरकारी माल खा-खाकर और मोटे होकर आयेंगे और फिर भौंकेगे.

इस देश की संसद कुत्तों के हवाले किसने की? क्यों की?

इन कुत्तों से देश को बचाओ

हम अपनी भूमी को ‘सुजलाम-सुफलाम’ कहते हैं, लेकिन शायद इसकी नेता पैद करने की कूव्वत आज़ादी की लड़ाई में ही चुक गई. अब सिर्फ कुत्ते पैदा हो रहे हैं जिनमें से सबसे ज्यादा खतरनाक, भौंकेले कुत्ते हम संसद में चुन-चुनकर भेज रहे हैं.

कुत्तों को संसद में बार-बार भेजना हमारी ही गलती है, इसे सुधारने कोई और नहीं आयेगा कोशिश हमें ही करनी होगी.

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(इस लेख को पूरा लिखने के बाद महसूस हुआ कि मैंने गलत लिख दिया. इस तरह घटिया शब्द इस्तेमाल करके किसी को बेइज़्ज़त करना ठीक नहीं. नेताओं को कुत्ते कहना सही नहीं है. मुझे कोई हक नहीं है उन्हें गाली देने का.

कुत्ते तो जिसका खाते है, उसका साथ मरते दम तक पूरी वफादारी से निभाते हैं. नेता अपने देश तक को नहीं छोड़ते… कोई खदानों को लूट रहा है, कोई आइपीएल को, कोई फसलों को, कोई कम्युनिकेशन संपदा उद्योपतियों को बेच रहा है

नहीं… मुझसे गलती हुई. नेताओं को कुत्ता कहकर मैं कुत्तों को इस कदर बेइज़्ज़त कर गया. मुझे माफ कर देना कुत्तों! मैं शर्मिंदा हूं कि मैंने तुम्हें गाली दी.)

Bihari Comment

4 comments:

Anonymous said...

Nice Comment

Anonymous said...

Interesting ....

संजय भास्‍कर said...

विचारणीय लेख के लिए बधाई

Anonymous said...

इस ज्वलंत लेख को लिख कर तुमने प्रशंसा का कार्य किया है अभिषेक .