मेरी समझ में ये नही आता है कि जिस चीज को किसी ने नही देखा है उसके लिए क्यों सर खपाते हैं? क्यों हम किसी भगवान् या अल्लाह के लिए अपना सारा काम काज छोड़ कर उसके विषय पर चर्चा करें? क्या आज तक किसी ने भगवान् या अल्लाह को साक्षात देखा है? या कोई ऐसा चमत्कार जिस से की सिर्फ भगवान् या अल्लाह की मौजूदगी का अहसास हो? क्या आपने देखा है भगवान् को? फिर आप और हम क्यों चिंता करें भगवान् की? अगर भगवान् स्वयं शक्तिशाली हैं तो क्यों नहीं अभी तक आकाश से आकाशवाणी हुई कि- हाँ वहां राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए. जिस भगवान् राम ने सारे ब्रह्माण्ड की संरचना की क्यों वो खुद के लिए मंदिर की निर्माण नहीं कर सकते?
दरअसल ना तो कोई भगवान् हैं ना ही कोई अल्लाह ना ही कि जीसस . सभी एक ही शक्ति के अलग अलग नाम हैं. हम इंसान भी बेहद मुर्ख हैं जो एक ही शक्ति की उपासना करते हैं लेकिन सिर्फ बोलचाल की भाषा के कारण उसे अलग अलग नाम से पुकारते हैं और उसी नाम के चलते आपस में लड़ते भी हैं.
जिस परम शक्ति ने हमें धरती दी है हमारी ये औकात कि हम उसी धरती पर उनके लिए घर बना सकें और अपने आप को भगवान् या अल्लाह का आश्रयदाता कहला दें? जिस भगवान् या अल्लाह ने मनुष्य को खरबों खरब टन अनाज दिया है हम उन्ही को उन्ही के दिए अनाज के चंद दानों का प्रसाद चढ़ा कर अपने वश में करना चाहते हैं? मनुष्य की कोई औकात ही नही है कि वो उस परम शक्ति के लिए धरती पर चंद इंटो को घर बना देजिन्होंने इस धरती का ही नहीं बल्कि इस सौरमंडल की तरह लाखों सौरमंडल का निर्माण किया हो.
दस मंजिली इमारत के छत पर से आप अगर नीचे देखोगे तो नीचे दिखने वाले इंसान चीटियों की तरह नजर आते हैं. वहां से तब कुछ पता नहीं चलता कि कौन हिन्दू है कौन मुस्लिम है , कौन सिख है या कौन इसाई? सभी एक ही तरह दिखने लगते हैं और हम कहते हैं कि वो इंसान हैं.
आप घर में या बाहर जो खाना खाते हैं क्या आपने कभी सोचा है कि इस खाने का अनाज हिन्दू के खेत का है या मुस्लिम के खेत का? आप जो वस्त्र पहनते हैं क्या आप सोचते हैं कि इस वस्त्र को बुनने वाले हाथ हिन्दू के हैं या मुस्लिम के? हम सभी इंसान हैं और इंसान ही इंसान कि जरूरत को पूरा कर सकता है.
धर्म का निर्माण जंगली मनुष्य को सामाजिक मनुष्य के रूप में परिवर्तित करने के लिए किया गया. किन्तु आज के नेता लोग उसी धर्म को सामाजिक मनुष्य को जंगली मनुष्य बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
By the way ... मेरे विचार से जिस जगह पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा जा रहा है वो जगह बेहद छोटी है एवं तंग गलियों से हो कर जाना पड़ता है. अगर राम मंदिर का निर्माण करना ही है तो कोई आवशयक नहीं कि उसी स्थान पर किया जाए. मेरा ये मत है कि पूरी अयोध्या ही भगवान् राम कि जन्मभूमी है इसलिए उस स्थान से हट कर कहीं हट कर अयोध्या में ही कम से कम 10 वर्ग किलोमीटर के स्थान चुन कर भगवान् राम का भव्य एवं विशाल मंदिर बनाया जाना चाहिए क्यों को भगवान् का घर कोई छोटे मोटे स्थान पर हो तो उसका महत्व कम हो जाता है. विशाल जगह ही भगवान् के विराट स्वरुप का सही प्रदर्शन कर सकता है. लेकिन एक शर्त ये भी होनी चाहिए कि उस विशाल मंदिर में सभी धर्मों के लोगों को आने का मौक़ा देना चाहिए ताकि देश से ही नही बल्कि विदेश से भी अनेकों विदेशी आ कर भारतीय सभ्यता का भव्यता देख कर अभिभूत रह जाएँ और परम शक्ति को पूजने का अधिकार सभी मनुष्य को मिलना चाहिए. इस प्रकार से अयोध्या में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. मेरे विचार से भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों को भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अयोध्या में विवादित स्थान से हट कर एक इतना विशाल भव्य राम मंदिर का निर्माणकरे कि जिस प्रकार ताजमहल , लालकिला आदि 500 सालों के बाद भी भारतीय संस्कृती की पहचान बनी हुई है उसी प्रकार से आने वाले सैकड़ोंसालों तक विशाल राम मंदिर भी भारतीय संस्कृति कि पहचान बनी रहे.
मुझे नहीं लगता कि विवादित स्थान से अलग मंदिर बनाए जाने पर हिन्दू या मुसलमानों को कोई प्रकार की आपत्ति होनी चाहिए.
मै फिर कहूँगा कि उस चीज के लिए मत लड़े जिसे किसी ने हज़ारों सालो से नहीं देखा है. धर्म सिर्फ आस्था का विषय है. धर्म हमें जीना सिखाती है किसी मानव को मारना नहीं.
4 comments:
आपने बिल्कुल सही लिखा है! मेरा तो ये मानना है कि हम अपना काम पूरी लगन और मेहनत से करें तो हमें भगवान सब कुछ देगा! ये तो संभव नहीं है की हमें भगवान का दर्शन मिले पर हम उनकी पूजा ज़रूर करते हैं और ये नहीं की सब काम छोड़कर सिर्फ़ भगवान को बुलाने में समय व्यर्थ करें! आखिर नुकसान तो हमारा ही होगा और बिना कोई काम किए भगवान कभी किसीकी मदद नहीं करता! बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट रहा! उम्दा प्रस्तुती!
behtreen post....
सही कहा बच्चे । बहुत सही कहा ।
अल्लाह कहो ईश्वर कहो वाहे गुरु ईसा कहो
सबका है वह भगवान जो हममे ही बसता है कहीं ।
तो किस बात की लडाई चला रहे हैं हम ?
बिलकुल सही कहा अपने, भगवान को हमारे बनाये मंदिर नहीं हमारे दिलों में प्रेम चाहिए!
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