Wednesday, December 31, 2008

हैप्पी न्यू इयर.

मेरे सभी ब्लॉगर साथियों, आपको और आपके इष्ट-मित्र सभी को, नए साल की ढेरो शुभकामनाये।
हैप्पी न्यू इयर।

Saturday, December 20, 2008

धर्म क्या है?

क्या आप जानते हैं धर्म क्या है? जप तप में, पूजा में या ऐसे ही अन्य रीति-रिवाजों में धर्म नहीं। यह धातु या पत्थर की मूर्तियों की पूजा में भी नहीं, न ही मंदिरों या मस्जिदों या चर्चों में है। यह बाइबिल या गीता पढ़ने या दिव्य/पवित्र कहे जाने वाले नामों को तकिया कलाम बना लेने में भी नहीं है, यह आदमी के अन्य अंधविश्वासों में भी नहीं है। ये सब धर्म नहीं।

धर्म अच्छाई, भलाई, शुभता का अहसास है। प्रेम है जो जीती जागती, भागती दौड़ती नदी की तरह अनन्त सा बह रहा है। इस अवस्था में आप पातें हैं कि एक क्षण ऐसा है जब कोई किसी तरह की खोज बाकी नहीं रही; और खोज का अन्त ही किसी पूर्णतः समग्रतः भिन्न का आरंभ है। ईश्वर, सत्य की खोज, पूरी तरह अच्छा बनना, दयालु बनने की कोशिश, धर्म नहीं। मन की ढंपी-छुपी कूट चालाकियों से परे - किसी संभावना का अहसास, उस अहसास में जीना, वही हो जाना यह असली धर्म है। पर यही तभी संभव है जब आप उस गड्ढे को पूर दें जिसमें आपका ‘अपनापन, अहंकार, आपका ‘कुछ’ भी होना रहता है। इस गड्ढे से बाहर निकल जिंदगी की नदी में उतर जाना धर्म है। जहां जीवन का आपको संभाल लेने का अपना ही विस्मयकारी अंदाज है, क्योंकि आपकी ओर से, आपके मन की ओर से कोई सुरक्षा या संभाल नहीं रही। जीवन जहां चाहे आपको ले चलता है क्योंकि आप उसका खुद का हिस्सा हैं। तब ही सुरक्षा की समस्या का अंत हो जाता है इस बात का भी कि लोग क्या कहेंगे, क्या नहीं कहेंगे और यह जीवन की खूबसूरती है।

Saturday, December 6, 2008

इन्‍हें भी देखें







जरा गौर करें

मुंबई हमले में मारे गए नौ आतंकियों को मुंबई के मुसलमानों ने कब्रिस्तान में दफन करने से मना कर दिया है।

भारत की राजनीती, राजनेता और विकास

कहते हैं राजनीती में कुछ भी ग़लत नही होता और आज के भारतीय राजनीती मेंतो बिल्कुल नैतिकता बची ही नहीं है। चारों तरफ़ अनैतिकता, अधर्म, भ्रष्‍ट्राचार का बोलबाला है। राजनेताओं के अन्दर देशप्रेम की भावना कूट-कूटके भरी होती थी अब ये गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। १९९० तक तो भारतीयराजनीतिज्ञों की स्थिति थोडी ठीक भी थी लेकिन उसके बाद के १८ वर्षों मेंराजनीती का पुरा परिदृश्य काफी तेज़ी से बदला. हमने आर्थिक उदारीकरण काचोल पहना,आरक्षण की व्यवस्था की गई,बाबरी मस्जिद ढही,जवाब में आतंकवाद काअँधेरा साम्राज्य कायम हुआ, क्षेत्रवाद की राजनीती बढ़ी,दंगे-फसादबढे,अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ी,भुखमरी कुपोषण,हत्या और अपराध बढे,बाहरीऔर आंतरिक सुरक्षा तार-तार हुआ,६२ सालों में पहली महिला राष्ट्रपति भीबनी और इंडिया और भारत भी बना. और इन सबने मौका दिया हमारे राजनेताओं कोखूब लूटने-खसोटने का,जातिवाद'धर्मवाद,क्षेत्रवाद की राजनीती कर वोटबटोरने का. राजनीती का अपराधीकरण हो चुका है.दुनिया में सबसे ज्यादाअपराधियों की शरणस्थली बन चुकी है हमारी विधायिका. पूरे देश मेंधार्मिक,राजनितिक उन्माद पुरे उफान पर है और उसमें मारी जा रही बेकसूरजनता. हमारे नेताओं में तनिक भी बेशर्मी बची ही नही है तभी सब के सब अपनाआत्मसंतुलन खो बैठे हैं और नजाने क्या-क्या उटपटांग बोलते फिर रहे हैजिससे जनभावनाएं आहत हो रही हैं.राजेंद्र प्रसाद,सर्वपल्लीराधाकृष्णन,जयप्रकाश नारायण,लालबहादुर शास्त्री,सरदार पटेलऔर अब्दुल कलामजैसे विचारकों वाले इस देश में आज एक भी योग्य नेता नहीं है जो राजनितिकस्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित,जनहित में काम करे. ऐसे घटियाराजनितिक,सामाजिक संस्कृति के बढ़ने से देश को आर्थिक,सामाजिक-राजनितिकरूप से काफी ज्यादा नुक्सान हो रहा है. नियमों-कानूनों की धज्जियाँ उडाईजा रही है. दल बदल कानून फेल हो गया है. ऐसे में आज जरुरत है स्वास्थ्यराजनितिक विकास की, मानवीयता के विकास की और जब इसका विकास होगा तभीगावों-और शहरों का विकास होगा और जब इन सबका विकास होगा तो पूरे भारत काविकास होगा. इसलिए सबसे पहले लोगों को शिक्षित किया जाए,उनको रोजगारमुहैया कराई जाए और सभी के बीच राष्ट्रप्रेम की भावना विकसित की जाए तभीहम अब्दुल कलाम साहब के सपनो का भारत वर्ष २०२० तक बना पाएंगे वरना इसदेश को इंडिया और भारत के बीच विभाजित होने से कोई नही बचा पायेगा.

Friday, December 5, 2008

हिंदुस्तान

एक बार गलती करे वह अनजान है दो बार गलती करे वह नादान है तीन बार गलती करे वह शैतान है और बार बार गलती करे वह पाकिस्तान हैं और हर बार नजर अंदाज करे वह हिंदुस्तान है ॥

नेताओ के प्रति नफरत

# एन डी टीवी को नेताओ के प्रति नफरत और घृणा से भरे दो लाख एस ऍम एस मिले हैं।
# एक सर्वे मे ८६ फीसदी लोगो का मानना है की नेतागण इस हमलो को रोकने मे पूरी तरह नाकाम रही है।
ये हमारी राजनीति व्यवस्था की विडम्बना ही है की ये नेता देशवासियों में उम्मीद जगाने मे असफल रहे। नेताओ होशियार। जनता जागने लगी है मुंबई हादसों पर उसकी प्रतिक्रिया सिर्फ़ एक बानगी है सब्र के फूटते पैमानों का। इससे पहले की हालत बेकाबू हो जाए संभाल लो अपना दामन। आमजनों और बेक़सूर की कीमत पर देश को दांव पर लगाने का खुनी खेल अब बंद करना होगा। अगर ये अपने मुंह पर लगाम नही लगा सकते तो देश क्या चलाएँगे। सियासत के लोग अगर इस दिशा मे कुछ ठोस कदम नही उठाएँगे तो जनता को ही इन्हे सबक सिखाने को आगे आना होगा। क्यूंकि अगर जनता जाग गई तो ये नेतागण कभी चैन की नींद नही सो पाएंगे।

Tuesday, December 2, 2008

अमेरिका और भारत


अमेरिका ने कहा है कि परमाणु डील से भारत से सम्बन्ध और बेहतर हो गयें है क्यों न हो मनमोहन जी ने कह दिया है कि पूरा भारत आपसे प्यार करता है पता नहीं कौन करता है कौन नहीं वैसे भी और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा ...

चढ़े थे बुश पर अब देखियें क्‍या होगा .....

मुर्गी का अंडे सेना,शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना

बचपन में एकबार रजुआ ठाकरे ने बलुआ ठाकरे से पूछा कि काका जी! ये सेना क्या होता है? बलुआ ने एक मुर्गी की तरफ हाथ दिखा कर कहा कि देखो बेटा रजुआ ये मुर्गी क्या कर रही है। रजुआ ने उत्तर दिया कि काकाजी ये मुर्गी अपने अंडों के ऊपर बैठी है। बलुआ काका ने बताया कि रजुआ बेटा इसी को सेना कहते हैं, मुर्गी अंडे से रही है। फिर जब बलुआ काका को परिस्थितियों ने कान पकड़ कर मुर्गा बनाया तो वे कुछ लैंगिक समस्या के चलते मुर्गा बन तो गये लेकिन हरकतें मुर्गियों जैसी करने लगे। उन्होंने भी हिंदुत्त्व के मुद्दों के अंडे दिये और "सेना" शुरू कर दिया। इस प्रकार एक सेना बन गयी। अब जब रजुआ बड़ा हुआ तो उसे भी कुछ तो सेना था तो उसने थोड़ा छोटा अंडा दिया और उसे सेना शुरू कर दिया। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोगों को सेना शब्द का अर्थ ही नहीं पता है। अरे मुर्गियॊं के चूजों! सेना उसे कहते हैं जो अभी मुंबई में आयी थी जिसे तुम लोगों ने जय महाराष्ट्र कह कर नहीं बल्कि जय हिंद कह कर धन्यवाद करा कि आपने हमारे शहर की रक्षा करी। बलुआ और रजुआ तो अपने बिलों में घुस कर मुद्दों के अंडे से रहे थे अपनी सेना वाली कला दिखा कर अब जब एक सप्ताह बीत जाएगा इस आतंकवादी घटना को उसके बाद फिर दोनो बलबलाने लगेंगे अपने अपने अंडे उछाल कर......

आज के नेताओं की कमीनापथीं

२६ नवम्‍बर को जब से मुंबई में आतंकवादियों का हमला हुआ है तब से लगता है कि हमारे नेताओं की नैतिकता कहीं खो गई है, या उनकी वक्तव्य शैली को ग्रहण लग गया है.. तभी तो वे जन भावनाओं को तिलांजलि देते हुए मनमाने बयान मीडिया में दे रहे हैं...
१. प्रकाश जायसवाल (श्री हेमंत करकरे के शहीद होने पर) - "एक अधिकारी चला गया तो दूसरा आ जाएगा."
२. आर.आर.पाटिल (मुंबई में आतंकी हमले पर) - "बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी घटनाएँ होती रहती हैं."
३. मुख्तार अब्बास नकवी (मुंबई में श्रद्धांजलि पर) - "महिलाएँ लिपस्टिक और पुरूष टाई-वाई लगाते हैं और पाश्चात संस्कृति का अनुकरण करके श्रद्धांजलि देकर दिखावा कर रहे है."
४. वी.एस.अच्युतानंदन (शहीद कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के घर जाने के बाद) - "अगर वह मेजर संदीप का घर नहीं होता तो वहां कुत्ता भी झांकने नहीं जाता."
इतना सब कहकर इन नेताओं को जन भावनाओं से खेलने का हक़ किसने दिया ?क्या इनकी जबान पर लगाम लग सकती है ?भगवान् कब इन्हे सदबुद्धि देगा ?क्या इन्हे कुछ भी कहने से पहले सोचने का पाठ नहीं पढाया गया ?

Saturday, November 29, 2008

राज ठाकरे की तॉवें पर राजनीतिक रोटियां

सभी राजनीतिक रोटियां सेकने में लग गए हैं। चुनाव करीब है। शायद तीन दशक पहले की बात आपको याद होगी, बाल ठाकरे के नेतृत्व में मुंबई में रहने वाले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ एक नारा दिया गया था, लुंगी उठाओ-पुंगी बजाओ। अब उसी खानदान के कुलदीपक ने उत्तर भारतीयों के विरोध का ठेका लिया है। संकट सामने है कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसे चुनें। अब देखिए वर्तमान राजनीति--
कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस इसलिए नवनिर्माण सेना को बढ़ावा दे रही है कि उसे शिव सेना से अगले चुनाव में मुकाबला करना है। अगर राज ठाकरे इस तरह की नंगई करके कुछ वोट काटने में सफल हो जाता है तो वह कांग्रेस के हित में रहेगा। यही वजह है कि कांग्रेस सरकार महाराष्ट्र में जंगलराज बरकरार रखने में मदद कर रही है। विलासराव देशमुख सरकार ने अगर गिरफ्तारी की भी, तो नाटक करने के लिए। हिंदी टीवी चैनलों पर मराठी बोलकर दिखाना पड़ा कि वे भी मराठियों के खैरख्वाह हैं।
भाजपा की राजनीति
यह पार्टी तो जैसे नंगी होने के लिए पैदा ही हुई है। सत्ता में रही तब अपने मुद्दे को छो़ड़कर नंगी हुई। सत्ता के बाहर रही तो और तरीकों से। राष्ट्रीय और हिंदूवादी पार्टी होने का दावा करने वाले ये लोग भी मुंबई में चल रही गुंडई के बारे में मौन साधे हुए हैं। शायद आडवाणी को प्रधानमंत्री बनने का लोभ इतना है कि वे राज ठाकरे और बाल ठाकरे दोनों को साधे रखना चाहते हैं। लेकिन इनको यह पता नहीं कि इस तरह के दोगलेपन को जनता पसंद नहीं करती।
लालू और मुलायम की राजनीति
ये केंद्र में सत्ता में बैठे हैं, लेकिन औकात नहीं है कि केंद्र सरकार की मुंबई में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को पिटवाने की नीति का विरोध कर सकें। खास बात यह है कि मुलायम के मुंबई प्रतिनिधि अबू आजमी भी अब उत्तर भारतीयों को संगठित करने में लग गए हैं। कोशिश यही कि इस पिटाई का राजनीतिक फायदा उठा लिया जाए। कांग्रेस की तुष्टिकरण में अमर सिंह तो पहले से ही सहयोगी बनकर बाटला हाउस के प्रवक्ता बनकर उभरे हैं।
अब सवाल उठता है कि ऐसी बुरी दशा में जनता जाए तो कहां जाए। राष्ट्रीयता का खामियाजा यूपी और बिहार वाले भुगत ही रहे हैं, जिसके कारण न तो इन राज्यों में सार्वजनिक इकाइयां हैं और न ही निजी। नौकरी के लिए ये दूसरे राज्यों में जाते हैं और यह समझते हैं कि पूरा भारत हमारा है, क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।

राष्ट्रीय बेशर्मी

मुंबई में समुद्र के रास्ते कितने लोग घुसे थे इस बात का तो अभी तक पता नहीं चल पाया है,लेकिन हथियार से खेलने वाले सभी शैतानों को ध्वस्त कर दिया गया है। हो सकता है कुछ शैतान बच निकले हो और किसी बिल में घुसे हो। हर पहलु को ध्यान में रखकर सरकारी तंत्र काम कर रहा है। बहुत जल्द मुंबई पटरी पर आ जाएगी। यहां की आबादी की जरूरते मुंबई को एक बार फिर से सक्रिय कर देंगी। फिर से इसमें गति और ताल आ जाएगा। लेकिन क्या अब हम आराम से यह सोच कर बैठ सकते हैं कि गुजरात, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों का कोई शहर नहीं जलेगा या नहीं उड़ेगा?
यह कंप्लीट वार है, और इसे एक आतंकी हमला मानकर भूला देना बहुत बड़ी राष्ट्रीय बेशर्मी होगी। और हम से कोई भी इस बात का यकीन नहीं दिला सकता कि अगला निशाना कौन सा शहर होगा, लेकिन हमला होगा और जरूर होगा। ये कंट्री के हेरिटेज पर पर हमला है, जो वर्षों से जारी है और जारी रहेगा। वर्षों से हमारे हेरिटेज पर हमले होता आ रहे है,चाहे वो संसद हो या फिर मुंबई का ताज। यह एक ही कड़ी है। और इस कड़ी का तार लादेनवादियों से जुड़ा है। इस्लाम में फतवे जारी करने का रिवाज है। क्या इसलाम की कोई धारा इनके खिलाफ फतवे जारी करने को कहता है,यदि नहीं कहता है तो इसलाम में संशोधन की जरूरत है। इतना तो तय है कि यह हमला इस्लाम के नाम पर हुआ है। जो धारा जीवित लोगों को टारगेट बना रहा है, उसे मिट्टी में दफना देने की जरूरत है। भारत एक ग्लोबल वार में फंस चुका है, अपनी इच्छा के विरुद्ध। मुंबई घटना को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।
यह वार है और चौतरफा वार है। बस पहचानने की जरूरत है। ठीक वैसे ही जैसे चर्चिल ने हिटलर के ऑपरेशन 16 को पहचाना था, और उसके ऑपरेशन को ध्वस्त करने लिए काउंटर ऑपरेशन लॉयन बनाया था। उन लोगों का टारगेट क्या है ? कभी लंदन को उड़ाते हैं, कभी ट्वीन टावर उड़ाते हैं, कभी जर्मनी को उड़ाते हैं,कभी मुंबई को। ये कौन लोग हैं और क्या चाहते हैं ? इसे आईटेंटीफाई किया जाना चाहिए। और इसके खिलाफ व्यवस्थित तरीके से इंटरनेशनली इनवोल्व होना चाहिए। चीन और जापन में इस तरह के हमले क्यों नहीं हो रहे हैं ??
क्‍या इससे कुछ भी कम राष्ट्रीय बेशर्मी हैं ?

कांग्रेस का दुर्भाग्य

इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य और देश का महा दुर्भाग्य कहा जायेगा, कांग्रेस जो खेल चुनाव पूर्व बेला में खेल रही थी वह डेक्कन मुज्जाहिद्दीन ने मुंबई को थर्रा कर बिगाड़ दिया। मनमोहन की सरकार से आतंरिक सुरक्षा तो संभाले नही संभालती, देश को क्या सुरक्षा मुहैय्या कराएगी। सरकार का खेल दो चरणों में कामयाब हो चुका था पहले इसने देश की आतंरिक सुरक्ष और शील के ध्वज वाहक भारत्धर्मी समाज के साधू संतों को हड़काया, मकोका लगा कर उन्हें अपमानित किया फिर सेना के छठे पे कमीशन की सिफारिशों से असंतोष ज़ाहिर करने पर शहीद मोहन चंद शर्मा के प्रतिराख्षा सेनाओं में परियाय रहे लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित को निशाने पर लिया ताकि फौज कार्य पालिका के अगुवाओं के बराबर भत्तों की मांग आइन्दा न दोहराएं। इन दिनों सरकार के निशाने पर न्याय पालिका थी। सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशों को विधाइयका द्बारा दो बार लोटाने के पीछे यही मंशा थी। आतंकवादियों ने अब जब मुंबई में खुला खेल फर्रुखाबादी खेला तब सरकार को इल्म हुआ अपनी सीमाओं का। विलास राव देशमुख तो अभी भी इतरा रहे हैं, कहते हैं की १८६ ही मरे निशाने पर तो पाँच हज़ार थे, शर्म की बात है सरकार के लिए, जो सेना कल तक निशाने पर थी हमेशा वही काम आती है। अब तो चेतो मनमोहन सर ....