२६ नवम्बर को जब से मुंबई में आतंकवादियों का हमला हुआ है तब से लगता है कि हमारे नेताओं की नैतिकता कहीं खो गई है, या उनकी वक्तव्य शैली को ग्रहण लग गया है.. तभी तो वे जन भावनाओं को तिलांजलि देते हुए मनमाने बयान मीडिया में दे रहे हैं...
१. प्रकाश जायसवाल (श्री हेमंत करकरे के शहीद होने पर) - "एक अधिकारी चला गया तो दूसरा आ जाएगा."
२. आर.आर.पाटिल (मुंबई में आतंकी हमले पर) - "बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी घटनाएँ होती रहती हैं."
३. मुख्तार अब्बास नकवी (मुंबई में श्रद्धांजलि पर) - "महिलाएँ लिपस्टिक और पुरूष टाई-वाई लगाते हैं और पाश्चात संस्कृति का अनुकरण करके श्रद्धांजलि देकर दिखावा कर रहे है."
४. वी.एस.अच्युतानंदन (शहीद कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के घर जाने के बाद) - "अगर वह मेजर संदीप का घर नहीं होता तो वहां कुत्ता भी झांकने नहीं जाता."
इतना सब कहकर इन नेताओं को जन भावनाओं से खेलने का हक़ किसने दिया ?क्या इनकी जबान पर लगाम लग सकती है ?भगवान् कब इन्हे सदबुद्धि देगा ?क्या इन्हे कुछ भी कहने से पहले सोचने का पाठ नहीं पढाया गया ?
1 comment:
Hamare Desh ki bad se badhar hone me der nahi ho sakti kyonki hamare desh ke rajneta hin aise hai jo sirf byanbaji hin kar sakte hai aur kuch nahi...... I want to say something about him (all the leaders which is being ruled on my country)all r impotent.
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