Friday, January 30, 2009

जो भी मिला अधूरा मिला

खुशियाँ ही मिली न पूरी न गम ही पूरा मिला
जब भी मिला जो भी मिला अधूरा ही मिला

लोंगो ने सींच कर पानी से गुलों को बना लिया गुलशन
हमने खून और पसीने भी बहाया तो कोई गुल न खिला

देकर धोका लोग ये कैसे भरोसा बड़ा लेते हैं
करके हजारो बफाएं, हमें कभी इक बफा का सिला न मिला

अब तो रोती है इक आँख और दूसरी हंसती है
अपनी मुलाकातों का ये क्या हो गया है सिलसिला

जो ख़ुद मैं भरी आग है , क्या कम जलता हूँ
ओ दूर से आती याद अब और न जला

मोसमे पतझड़ है कि हूँ सूखा हुआ सा
बस अब टूट के गिर जाऊंगा जो और हिला

जो तेरी मर्जी ले तू भी करले पूरी
न शिकायत करेगे हम किसी से , न ही होगी हमें तुझसे कोई गिला

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