Friday, February 27, 2009

Some People


~Anisha~

When U R Sad


~My friend~


~My friend~

Tuesday, February 24, 2009

ख़ुद को बदलते देखा

आज मैंने ख़ुद को बदलते देखा
अपने विचारों से झगड़ते देखा

रोज नए ख्यालों को उभरते देखा
उलझे ख्यालों को न सुलझते देखा

ख़ुद को उनसे अलग करते देखा
शायद आज ख़ुद को संभलते देखा

कोई अपना नहीं

जब दिल से बात करो तो लोग दिमाग से सुनते हैं। जब दिमाग से बात करो तो लोग दिल से सुनते हैं। स्वर मिलाओ तो स्वर नहीं मिलते । अपना बनाओ तो अपने नहीं बनते हैं।अगर बन भी गए तो आगे चलकर मुसीबत बनते है। यह दुनिया एक तलाश घर हैं। जब तक तलाश पूरी न हो जाये तलाशते रहो । यह तलाश ही जिन्दगी है। कभी कभी इस तलाश में आदमी जीत भी जाता है मगर हारता जादा है। जीत के अपने अपने तरीके हैं किसी का तरीका किसी दूसरे को जमता नहीं। एक अजीब सी उलझन में आदमी न चाहते हुए उलझ सा जाता है । कोई भी इस जिन्दगी में इस मनोदशा से अछूता नहीं है। जिन्दगी जीने का कोई एक पैमाना नहीं है। शायद इसी का नाम जिन्दगी है। जहाँ तक मैं समझता हूँ। इस दुनिया में हजारों नहीं लाखों नहीं बल्कि अनगिनत स्वभाव के लोग है। कभी कभी अपने मन के लोग सारी उम्र नहीं मिलते। समझ में ही नहीं आता कहाँ से शुरू करुँ कहाँ ख़त्म करुँ। कभी कभी सारी दुनिया को समझने के चक्कर में हम इतने उलझ जाते हैं कि ये दुनिया ही बेगानी लगने लगती है। आदमी कभी थक जाता है तो कभी थका दिया जाता है। एक कहावत से मैं काफी प्रभावित हूँ। " कि जिन्दगी में खुश रहना बहुत सरल है पर सरल रहना बहुत कठिन है "। शायद जिन्दगी का रहस्य इसी कहावत में छिपा नज़र आता है। जिन्दगी समझने से कभी समझ में नहीं आती क्योकि हम ज्ञान के समुन्दर में इतने उलझ जाते हैं कि जिन्दगी से काफी दूर चले जाते है।अंत में यही दूरी हमारी निराशा का कारन बन जाती है। फिर भी इस कारन को हम समझ के समझना नहीं चाहते हैं । शायद हमारी यही जिद हमारे हर दुःख का कारन बन जाती है।

पाने की चाह में

पाने की चाह में खोया बहुत हूँ मैं।
हंसने की चाह में रोया बहुत हूँ मैं।


सागर में मोती हमें भी मिल जायेगे
इसीलिए खुदको डुबोया बहुत हूँ मैं।

इंसानियत कहीं बिखर ही न जाये
प्यार में सबको पिरोया बहुत हूँ मैं।

कैसे कहूँ कैसे सही है उसकी जुदाई
इन आँखों को भिगोया बहुत हूँ मैं।

महक उठे जहाँ फूलों की खुशबू से
फूलों को सचमुच बोया बहुत हूँ मैं।

ठुकरा करके वो कहीं न चली जाये
इसलिए नखरों को ढोया बहुत हूँ मैं।

गुजरा वक्त

गुजरा वक्त कभी वापस नहीं आए।
चाहे कोई चीखे और चिल्लाए ।
झडे फूल कभी खिलते नहीं हैं
गए लोग कभी मिलते नहीं हैं
चाहे कोई सारी उमर बुलाए।
मनालो उनको जो रूठे हैं
मिलालो उनको जो छूटे हैं
ऐसा न हो फ़िर मन पछताए ।
वक्त कभी भी रुका नहीं है
किसी के आगे झुका नहीं है
वक्त का दरिया आगे बढ़ता जाए।
गुजरा वक्त .....

Friday, February 6, 2009







Tuesday, February 3, 2009