प्रधानमंत्री जी, आप कहते हैं कि लोग ज़्यादा और बेहतर खाने लगे हैं इसलिए खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ गई है और इसलिए उनकी क़ीमतें बढ़ रही हैं.
आपका कहना है कि यह सरकार की सामाजिक न्याय दिलवाने की पहल का ही नतीजा है क्योंकि देश में बहुत से लोगों को इसका फ़ायदा हुआ है, उनकी आमदानी बढ़ी और वे अच्छा खा-पी सकते हैं.
पर आख़िर कौन हैं ये लोग प्रधानमंत्री जी? और वो कौन सी योजना है जो उन्हें बेहतर जीवन दे रही है?
आपकी सरकार ने एक योजना शुरु की है जिसका नाम महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी क़ानून (मनरेगा) है.
इस योजना के अंतर्गत गांवों में रह रहे हर परिवार के व्यक्ति को कम से कम 100 दिन का रोज़गार साल में मिलता है. अब आपने महंगाई के मद्देनज़र मेहनताना भी 100 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 120 रुपए के आसपास कर दिया है. इस तरह से देखें तो साल में हर ग्रामीण परिवार को 12 हज़ार रुपये तो मिलेंगे ही.
12 हज़ार रुपए, वाह! गांववालों की तो चांदी हो गई... लेकिन ज़रा रुकिए..12 हज़ार रुपये मतलब 32 रुपये रोज़. मान लिया जाए कि यह मनरेगा में काम करने वाले के परिवार की कुल आमदनी है.
३२ रुपया में थाली खाली |
अब आज की महंगाई देखिए. दाल, चावल से लेकर दूध, अंडे और माँस-मछली तक सभी के दाम कहाँ पहुँच गए हैं? आपकी सरकार के आंकड़े कह रहे हैं कि खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर 18 प्रतिशत तक बढ़ गई है.
क्या आपने कभी सोचा है कि इस महंगाई में 32 रुपए रोज़ कमाने वाले परिवार की थाली में क्या परोसा जाता होगा?
आपके घोषित उत्तराधिकारी राहुल गांधी तो कभी-कभी दलितों के घर पर जाते रहे हैं कभी उनसे पूछिएगा कि उनकी थाली कैसे भरती है और क्या दिन में दोनों वक़्त ठीक से भरती है?
आंध्र प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश तक आज भी किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आ रही हैं. जब आपकी सरकार समृद्धि फैला रही है तो ये नासमझ क्यों आत्महत्या कर रहे हैं मनमोहन जी?
कौन है वह जिसे आपकी सरकार आम आदमी कहती है?
चलिए उनकी बात करें जो आपके मनरेगा के भरोसे नहीं हैं. जो रिक्शा चलाता है, ऑटो चलाता है, ड्राइवरी करता है, दुकान में काम करता है या घरेलू काम करता है. वो बहुत कमाता है तो पाँच-सात हज़ार रुपया महीना कमाता है. चार लोगों का आदर्श परिवार भी हो तो घर का किराया देने के बाद उसके पास खाद्य सामग्री ख़रीदने के लिए कितना पैसा बचता होगा मनमोहन जी? और फिर उसे बच्चों की पढ़ाई के लिए, कपड़ों के लिए और गाहे-बगाहे होने वाली बीमारी के लिए भी तो पैसा चाहिए?
चलिए अपने राजप्रासाद से निकलिए किसी दिन चलते हैं आपके आम आदमी से मिलने.
और मनमोहन जी जब आप ऐसे बयान दें तो अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी कुछ जानकारी दे दिया करें.
देखिए ना, अभी दो दिन पहले एक राष्ट्रीय कहे जाने वाले अख़बार में अपने नाम से लेख लिखा है और कहा है कि देश की 40 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है, 9.3 करोड़ लोग झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं, 12.8 करोड़ को साफ़ पानी नहीं मिलता, 70 लाख बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं.
ये तो आपके आम आदमी से भी गए गुज़रे लोग दिखते हैं.
तो फिर प्रधानमंत्री जी कौन हैं वो लोग जो बेहतर खा रहे हैं और महंगाई बढ़ा रहे हैं?
इन्हें हमारे देश की चिंता हैं पर हमारे प्रधानमंत्री को नहीं (कभी गरीबो की बस्ती में २-४ रात आम आदमी की तरह गुजारे तो पता चले) |
Source : BBC (Renu Agaal)